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Thursday, March 13, 2014

निराकार ईश्वर तथा अंड बंड व्याख्याएं

निराकार - यह शब्द सुनते ही आज कई सनातन परंपरा के अनुयायी कहलाने वालों को मिर्चें लगने लगती हैं | पता नहीं कब यह धारणा प्रबल हुई जिसमें हिन्दू अथवा सनातन मत में अवतार का होना अनिवार्य माना जाने लगा तथा तथा वेद तथा आर्ष ग्रंथों में वर्णित निराकार सर्वशक्तिमान ब्रह्म को मानने वालों को नास्तिक कहा जाने लगा | आज आश्चर्य है कि मुझे अनेक ऐसे मित्र मिलते हैं जो यह जानते ही नहीं कि निराकार क्या है तथा अकस्मात् यह प्रश्न पूछ बैठते हैं कि "आप कौनसे भगवान् को मानते हो" |

परन्तु यह आलेख लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य निराकार साकार की बहस को आगे बढ़ाना अथवा जनसाधारण की धर्म सम्बन्धी जानकारी का मूल्यांकन करना नहीं हैं | यहाँ निराकार के सम्बन्ध में कुछ विचार मेरी दृष्टि में आए हैं, जिन पर कुछ विचार करना चाहता हूँ |

हर शब्द की अपने विचारों के अनुकूल अंड बंड व्याख्या करने की एक परिपाटी सी चल पड़ी है | ऐसा ही कुछ निराकार शब्द के साथ भी हुआ है | निराकार शब्द का अर्थ है निर+आकार अर्थात जिसका कोई आकार न हो | ईश्वर निराकार है, वह दिखता नहीं, केवल ज्ञान एवं साधना द्वारा समाधी में प्राप्त होता है, यह ऋषि मान्यता रही है |

परन्तु ईश्वर का अवतार मानने वाले कुछ महानुभाव इस विचार को पचा नहीं पा रहे है, इसलिए ऐसे कुछ गुरु घंटालों तथा उनके कुछ चेले चपाटे निराकार की एक नहीं व्याख्या लेकर सामने आए हैं | उनके अनुसार जैसे गीली मिट्टी का कोई आकार नहीं होता तथा उसे मनचाहा आकार दिया जा सकता है, उसी प्रकार ब्रह्म को भी मनचाहा आकार दिया जा सकता है | कुछ महानुभाव इस कुतर्क पर भले ही वाह वाह कर उठें, परन्तु थोड़ी से सूक्ष्मता से विचार करने पर सरलता से समझा जा साक्ता है कि यह तर्क कितना हास्यास्पद एवं बचकाना है | विचार करें कि क्या सचमुच गीली मिट्टी का कोई आकार नहीं होता ? हमें तो ऐसा नहीं लगता | वास्तिवकता में उसका आकार परिवर्तित होता रहता है, परन्तु इससे वह निराकार तो नहीं हुई | व्यवहार में भले ही थोड़ी देर के लिए यह कह दिया जाए कि इसका कोई आकार नहीं, परन्तु वास्तिवकता में वह "अनिश्चित आकार" वाली है, निराकार नहीं |