Labels

Tuesday, October 8, 2019

क्या आपको सचमुच रावण जैसा भाई चाहिए? (2)

(Copied)

 आजकल कुछ पढ़े लिखे रावण का गुणगान करते दिखाई दे रहे है

उन जोकरों को कुछ समझाना चाहूँगा , जो दिन रात बकते है
सीता जीवित मिली राम की शक्ति और पवित्र मिली रावण की भक्ति थी 

रावण के दुश्चरित्र


रावण का चरित्र हम वाल्मीकीय रामायण से प्रस्तुत करते हैं। पाठकगण समझ जायेंगे कि रावण कितना "चरित्रवान" था:-

PROOF NO. 1
प्रमाण क्रमांक-१

(क) रावण यहां वहां से कई स्त्रियां हर लाया था:-
रावण संन्यासी का कपट वेश त्यागकर सीताजी से कहता है:-
बह्वीनामुत्तमस्त्रीणामाहृतानामितस्ततः ।
सर्वासामेव भद्रं ते ममाग्रमहिषी भव ॥ २८ ॥
मैं यहां वहां से अनेकों सुंदर स्त्रियों को हरण करके ले आया।उन सबमें तू मेरी पटरानी बन,इसमें तेरी भलाई है।।२८।।
(अरण्यकांड सर्ग ४७/२८)

PROOF NO.2
प्रमाण क्रमांक-२

परस्त्रीगमन राक्षसों का धर्म है!

रावण ने सीता से कहा: -
स्वधर्मो रक्षसां भीरु सर्वथैव न संशयः ।
गमनं वा परस्त्रीणां हरणं संप्रमथ्य वा ॥ ५ ॥
"भीरू! तू ये मत समझ कि मैंने तुझे हरकर कोई अधर्म किया है।दूसरों की स्त्रियों का हरण व परस्त्रियों से भोग करना राक्षसों का धर्म है-इसमें संदेह नहीं ।।५।।"
( सुंदरकांड सर्ग २०/५)
लीजिये महाराज! रावण ने खुद स्वीकार किया है कि वो इधर उधर से परस्त्रियों को हरकर उनसे संभोग करता है। अब हम आपकी मानें या रावण की? निश्चित ही रावण की गवाही अधिक माननीय होगी, क्योंकि ये तो उसका अपना अनुभव है और आप केवल वकालत कर रहो हैं।वाल्मीकीय रामायण से इस विषय पर सैकड़ों प्रमाण दिये जा सकते हैं।

PROOF NO.3
प्रमाण क्रमांक-३

मंदोदरि का रावणवध के बाद विलाप करते हुये रोती है तथा कहती है।

धर्मव्यवस्थाभेत्तारं मायास्रष्टारमाहवे । 
देवासुरनृकन्यानां आहर्तारं ततस्ततः ।। ५३ ।।
आप(रावण) धर्मकी व्यवस्था को तोड़ने वाले,संग्राम में माया रचने वाले थे। देवता,असुर व मनुष्यों की कन्याओं यहां वहां से हरण करके लाते थे।।५३।।
( युद्धकांड सर्ग १११)
लीजिये, अब रावण की पटरानी,बीवी की गवाही भी आ गई कि रावण परस्त्रीगामी था।

PROOF NO.4
प्रमाण क्रमांक-४

यही नहीं, रावण ने वेदवती,पुंजिकास्थिलिका नामक अप्सरा और बहुत सी नारियों से बलात्कारपूर्वक भोग किया था।
बहुत सी नारियों से बलात्कारपूर्वक भोग किया था। ये बात आपके दादागुरु ललईसिंह यादव ने पेरियार की बात के समर्थन में कही है। देखिये, पेरियार ने सीताजी पर आक्षेप करते हुये नंबर ३६ में कहा है:-

१:-युद्धकांड १३.१३-१५:- रावण ने पुंजिकास्थिलिका नामक अप्सरा से शक्ति पूर्वक संभोग किया तब ब्रह्मा जी ने उसको शाप दिया कि किसी स्त्री से यदि वो बलपूर्वक संभोग करेगा तो उसके सर के टुकड़े हो जायेंगे ।
२:- उत्तरकांड २५/५५-५६ का प्रमाण देकर लिखा है कि रावण ने नलकूबर की स्त्री से बलपूर्वक संभोग किया तब उसको शाप मिला कि वो किसी स्त्री से बल पूर्वक संभोग करेगा तो उसका सर फट जायेगा।

ऐसे कई प्रमाण रामायण से दर्ज किये जा सकते हैं जहां रावण परस्त्रीगामी ,बलात्कारी और लंपट सिद्ध होता है। जब हद पार हो गई, तब ब्रह्माजी ने उसे शाप दिया कि यदि वो फिर आगे से किसी स्त्री से बलात्कार करेगा, तो उसका सर फोड़ देंगे।
अंततः जब उसने देवी सीता को चुराया, तो उसकी सीताजी पर भी गंदी दृष्टि थी। पर जीते जी उनसे व्यभिचार न कर सका और उन पतिव्रता देवी के पातिव्रत्य तेज से जलकर खाक हो गया! देखिये, मंदोदरि के शब्दों में:-
ऐश्वर्यस्य विनाशाय देहस्य स्वजनस्य च । 
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं अरण्ये विजने शुभाम् । 
आनयित्वा तु तां दीनां छद्मनाऽऽत्मस्वदूषणम् ।। २२ ।। 
अप्राप्य तं चैव कामं मैथिलीसंगमे कृतम् । 
पतिव्रतायास्तपसा नूनं दग्धोऽसि मे प्रभो ।। २३ ।।
प्राणनाथ! सर्वांगसुंदरी शुभलक्षणा सीता को वन में आप उनके निवास से , छल द्वारा हरकर ले आये,ये आपके लिये बहुत बड़े कलंक की बात थी।मैथिली से संभोग करने की जो आपके मन में कामना थी,वो आप पूरी न कर सके उलट उस पतिव्रता देवी की तपस्या में भस्म हो गये अवश्य ऐसा ही घटा है।।२२-२३।
( युद्धकांड सर्ग १११)

ऐसे व्यभिचारी, व्यसनी, बलात्कारी, शराबी, अधर्मी व्यक्ति रावण को अपना महान पूर्वज बताते हैं!
ऐसे दुष्ट का नाश करने वाले मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम ही हमारे लिए वरणीय और आदरणीय हो सकते है।

Thursday, January 11, 2018

Actual Varna Vyavastha and Swami Dayanand

Today, a great antagonism can be witnessed about Varna Vyavastha in many rallies and public statements by some proclaimed dalit leaders. If it had been in 1950s or 1960s, I would have said that it is their anger towards the discrimination that they faced in the past few centuries. But today, in year 2018, I am forced to say that this is mere a politics.

Without understanding the form of Varna Vyavastha that was based on guna karma swabhava of a person, these leaders want to burn the scriptures wherefrom it came. Swami Dayanand, the great social reformer and scholar of his time, pointed towards the ancient Varna Vyavastha. According to this, anyone with intellectual abilities is Brahmin, the warrior class is called Kshatriya, the business minded individuals are known as Vaishya and those who are unable to do all this and can perform only physical labor are Shudra. There are some examples that we can see in ancient history. Vishwamitra, who was born as Kshatirya became Brahmin in his later age, Jaballi Rishi whose father was unknown and it is said that he was a son of a prostitute, also got the status of Brahmin. As per Manu Smiriti, which many people want to burn, Brahmin can become Shudra also and Shudra can also become a Brahmin. Kathak Samhita says, “Don’t ask Brahmin who is his parents, if he has fulfilled the eligibility of knowledge, then he is the Brahmin”.

Ironically, I have seen a proud Hindu condemning Swami Dayanand as he said at a place in Satyarth Prakash that Shudras should serve other three varnas. I would only like to say here that first one should understand the actual meaning of varnas. Swami Dayanand’s Brahmin, Kshatriya, Vaishya and Shudra  were not birth based, but they were just adjectives to a person’s qualities as stated in ancient scriptures.


Friday, October 6, 2017

क्या आपको सचमुच रावण जैसा भाई चाहिए?

एक संदेश वर्षों से फॉरवर्ड हो रहा है जिसमें कुछ स्त्रियों को रावण जैसा भाई चाहिए । *मेरा दावा है कि जिन स्त्रियों ने रामायण का अध्ययन किया है वे सपने में भी रावण जैसा भाई नहीं चाहेंगी ।* आइए देखें रावण का वास्तविक चरित्र ।

1. रावण वही व्यक्ति था जिसने अपनी बहन शूर्पनखा के पति विद्युत झीव का वध किया था । तब सूर्पणंखा ने अपने ही भाई को श्राप दिया कि, तेरे सर्वनाश का कारण मै बनूंगी..!! *ऐसा था रावण और शूपर्णखा का प्रेम* । श्रीराम पर आक्रमण उसने शूर्पनखा के मुख से माता सीता के सौंदर्य का वर्णन सुनकर वासना के वशीभूत होकर किया ।
2. एक गरीब ब्राह्मणी, “वेदवती” के रूप से प्रभावित होकर जब रावण उसे बालों से घसीट कर ले जाने लगा तो वेदवती ने आत्मदाह कर लिया..और वो उसे श्राप दे गई कि तेरा विनाश एक स्त्री के कारण ही होगा..!!! वास्तविक कथाओं के अनुसार रावण एक बलात्कारी था ।
3. रावण ने अनेक ऋषिमुनियों का वध किया, अनेक यज्ञ ध्वंस किये, ना जाने कितनी स्त्रियों का अपहरण किया..यहां तक कि स्वर्ग लोक(कुछ विद्वानों के अनुसार हिमाचल)की अप्सरा “रंभा” को भी नहीं छोड़ा..!!*
4. कोई कहता है कि रावण अजेय था...
जी नहीं.. श्री राम के अलावा उसे राजा बलि, वानरराज बाली , महिष्मति के राजा कार्तविर्य अर्जुन और स्वयं भगवान शिव ने भी हराया था..!!
5. अपनी बहन के परपुरूष को भोगने के लिए उसका समर्थन करना एक अच्छे भाई का चिह्न कैसे हुआ ?
6. यदि रावण सचमुच वीर था तो श्रीराम और लक्ष्मण जी को धोखे से दूसरी ओर भेजकर माता सीता का अपहरण क्यों किया ।
7. एक ओर महाझूठ कि रावण से माता सीता को कभी स्पर्श नहीं किया । क्या रावण ने उनका अपहरण बिना स्पर्श किये किया । वैसे भी रावण ने स्वयं महापार्श्व को अपने पिछले कुकर्मों के कारण दिए गए ब्रह्माजी के श्राप के कारण स्वयं को बलात्कार में असमर्थ बताया, जिसके कारण वह सीता माता के साथ कुछ गलत करने में असमर्थ था । अपनी इसी नपुंसकता के कारण वह कुछ गलत नहीं कर सका, किसी सदाचार के कारण नहीं ।

जहाँ तक माता सीता के वन जाने का प्रश्न है तो अधिकतर विद्वान रामायण के उत्तर कांड को बाद में जोड़ा हुआ मानते हैं जिसमे माता सीता के वन जाने का वर्णन है, अर्थात् इस प्रसंग के होने को ही गलत मानते हैं । यदि आप इसे न भी मानें तो भी रावण के ऊपर लिखे महादोष रामायण में स्पष्ट लिखे हैं जिसकी अनुसार रावण अपनी बहन के पति का हत्यारा, एक बलात्कारी, एक अत्याचारी, एक कायर और एक भगोड़ा था । क्या बहनें ऐसा भाई चाहेंगी ? जय श्री राम । दशहरे की हार्दिक शुभ कामनाएं ।

Monday, June 5, 2017

Who Is ‘Shudra’ according to Swami Dayananda

The word ‘Shudra’ has been a subject of dispute since the time when some reformers started ridiculing the cast system. Of course, the present day cast system cannot be accepted. Swami Dayanand Saraswati is one of the names who fought against the prevalent system of his time.  But, he also indicated the evidences, which had shown that the cast system was based on gun karma svabhava (quality, deeds and nature) of a person.

But, here I found some gentlemen quoting a line from Satyarth Prakash, one of the popular treatises of Dayananda, in which he said that Shudra should serve other varnas, and trying to prove him a castist. But, perhaps they forgot to read the other part of his book, in which he clearly said that a Shudra can become a Brahmin and similarly a Brahmin can become a Shudra according to the deeds. A long description has been written by him to prove that the varna system is according to deeds not according to birth. According to Satyartha Prakasha and his other books, Shudra is a person who is not able to do the mental work (which can be from any family) but can do the physical work. About other varna, Brahmin is the person who is learned, Kshatriya is the person who is warrior and Vaishya is the person who has the ability to do the business. A Brahmin’s son or daughter can be Brahmin, Kshatriya, Vaishya or Shudra, and similarly the child of other persons of other varnas can be of any varna. The person who has the physical ability and not the mental efficiency often serves the persons with mental ability, and the same thing Swami Dayanand described about Shudra.


So, the Shudra according to Swami Dayanand has nothing to do with its pet definition. It is Arya Samaj founded by him where Shudra can also become a Pandit.  

Saturday, April 8, 2017

Honesty Is First Prerequisite to Spread an Ideology

“Honesty is the best policy”, this English proverb has been read by most of the people who have studied this language. But there is a question what honesty actually is. Is it just honesty of money? No, but it has a vast meaning. The honesty in thoughts is the first thing to be followed. I am not saying to reveal every thought in front of everyone. Of course, we need to hide some things for our own sake or for preventing the society from upheavals.


On Facebook, I am witnessing the views of certain people who want to spread a certain ideology – the Hindutva ideology. Well, I have also supported this ideology at certain instance wherever it is discussed intellectually. But, I am surprised to find some people on Facebook, who are willing to spread this ideology vaguely just showing some zeal. But, suppressing some logics and promoting a few points will not take anywhere to these people. For promoting the ideology in a proper manner, you are required to accept criticisms also by putting some of your emotions on the other side and also discard some of the things like a true Yogi does.

Sunday, December 27, 2015

Vaishnavism and Vedas

Vaishnavism has become a cult of Hinduism in the present scenario. The organizations like ISKCON are trying to promote it for several years. However, it has done some good works like promotion of some Vedic and Indological concepts in the western world. On the other hand, Dr. Michael Creamo and some other such persons did some good works to get the evidences of Indian timeline, which goes beyond lakhs of years.


But, the biggest problem that if I find with Vaishnavism is its overlooking of Vedas. Those, who are inclined towards this culture, will find it strange, because of their prejudice that whatever is being taught in Vaishnavism is Vedic. But, if you observe the things, when it comes to giving references, it gives the references from Bhagwat Purun rather than Vedas and Vedic scripture. Even Dr. Creamo takes the references from Bhagwatam  instead of the Vedic scriptures of Vedang Jyotish which is supposed to be the major treatise for understanding the ancient system. Even at some instances, where the Vaishnavs talk about Vedas, their interpretation is based on Pauranik tales rather than the Vedangas like Nirukta, which are the sources of Vedic interpretation. You will find hardly any text from Vaishnavs, where they will refer for Nirukta for the Vedic interpretation.  

Thursday, March 13, 2014

निराकार ईश्वर तथा अंड बंड व्याख्याएं

निराकार - यह शब्द सुनते ही आज कई सनातन परंपरा के अनुयायी कहलाने वालों को मिर्चें लगने लगती हैं | पता नहीं कब यह धारणा प्रबल हुई जिसमें हिन्दू अथवा सनातन मत में अवतार का होना अनिवार्य माना जाने लगा तथा तथा वेद तथा आर्ष ग्रंथों में वर्णित निराकार सर्वशक्तिमान ब्रह्म को मानने वालों को नास्तिक कहा जाने लगा | आज आश्चर्य है कि मुझे अनेक ऐसे मित्र मिलते हैं जो यह जानते ही नहीं कि निराकार क्या है तथा अकस्मात् यह प्रश्न पूछ बैठते हैं कि "आप कौनसे भगवान् को मानते हो" |

परन्तु यह आलेख लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य निराकार साकार की बहस को आगे बढ़ाना अथवा जनसाधारण की धर्म सम्बन्धी जानकारी का मूल्यांकन करना नहीं हैं | यहाँ निराकार के सम्बन्ध में कुछ विचार मेरी दृष्टि में आए हैं, जिन पर कुछ विचार करना चाहता हूँ |

हर शब्द की अपने विचारों के अनुकूल अंड बंड व्याख्या करने की एक परिपाटी सी चल पड़ी है | ऐसा ही कुछ निराकार शब्द के साथ भी हुआ है | निराकार शब्द का अर्थ है निर+आकार अर्थात जिसका कोई आकार न हो | ईश्वर निराकार है, वह दिखता नहीं, केवल ज्ञान एवं साधना द्वारा समाधी में प्राप्त होता है, यह ऋषि मान्यता रही है |

परन्तु ईश्वर का अवतार मानने वाले कुछ महानुभाव इस विचार को पचा नहीं पा रहे है, इसलिए ऐसे कुछ गुरु घंटालों तथा उनके कुछ चेले चपाटे निराकार की एक नहीं व्याख्या लेकर सामने आए हैं | उनके अनुसार जैसे गीली मिट्टी का कोई आकार नहीं होता तथा उसे मनचाहा आकार दिया जा सकता है, उसी प्रकार ब्रह्म को भी मनचाहा आकार दिया जा सकता है | कुछ महानुभाव इस कुतर्क पर भले ही वाह वाह कर उठें, परन्तु थोड़ी से सूक्ष्मता से विचार करने पर सरलता से समझा जा साक्ता है कि यह तर्क कितना हास्यास्पद एवं बचकाना है | विचार करें कि क्या सचमुच गीली मिट्टी का कोई आकार नहीं होता ? हमें तो ऐसा नहीं लगता | वास्तिवकता में उसका आकार परिवर्तित होता रहता है, परन्तु इससे वह निराकार तो नहीं हुई | व्यवहार में भले ही थोड़ी देर के लिए यह कह दिया जाए कि इसका कोई आकार नहीं, परन्तु वास्तिवकता में वह "अनिश्चित आकार" वाली है, निराकार नहीं |